1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मनी ने चार महीने में ही खत्म कर दिए एक साल के संसाधन

एलिस्टेयर वॉल्श
४ मई २०२४

जर्मनी ने सिर्फ चार महीनों में ही पूरे साल के पारिस्थितिक संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया है. यह आंकड़ा जर्मनी में जरूरत से अधिक उपभोग की समस्या की ओर इशारा करता है.

https://p.dw.com/p/4fV7C
अनावश्यक उपभोग बना जर्मनी के लिए एक चुनौतीतस्वीर: Fabian Sommer/dpa/picture alliance

जर्मनी ने सिर्फ चार महीनों में ही अपने पूरे साल के पारिस्थितिक संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया है. अमेरिकी गैर सरकारी संगठन ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के मुताबिक अगर पूरी दुनिया जर्मनी की तरह व्यवहार करने लगे तो इंसानों के उपभोग को पूरा करने के लिएतीन पृथ्वियोंकी जरूरत पड़ेगी.

क्या है ओवरशूट डे

एक साल की अवधि में जब किसी देश की पारिस्थितिक संसाधनों और सेवाओं की मांग पृथ्वी पर उन संसाधनों को दोबारा पैदा करने की क्षमता से अधिक होती है उसे ‘ओवरशूट डे' कहते हैं. लग्जमबर्ग, कतर जैसे देशों ने फरवरी में ही अपने पूरे साल के संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया था. वहीं, साल भर के संसाधनों के उपभोग को लेकर कंबोडिया और मैडागास्कर जैसे देशों के तय सीमा के अंदर ही रहने की संभावना है.

पिछले साल जर्मनी ने चार मई को अपने सभी संसाधनों को इस्तेमाल कर लिया था. इस बार जर्मनी ने तीन मई यानी एक दिन पहले ही ऐसा कर दिखाया है. जर्मनी के गैर सरकारी संगठन जर्मन वॉच की शिक्षा अधिकारी आयलिन लीनर्ट ने बयान जारी कर कहा कि जर्मनी का ओवरशूट डे का चार महीनों के अंदर ही आना इस बात की ओर ध्यान दिलाता है कि सभी सेक्टरों की मौजूदा स्थितियों को बदलना होगा.

मांस की भारी खपत है एक कारण 

पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था ग्रीनवॉच के मुताबिक जर्मनी में पृथ्वी के संसाधनों के जरूरत से अधिक इस्तेमाल के पीछे मांस का उत्पादन और खपत सबसे बड़ी वजह है. जर्मनी में खेती की 60 फीसदी जमीन जानवरों का खाना उगाने के लिए इस्तेमाल की जाती है. लाखों टन जानवरों का खाना जर्मनी दूसरों देशों से आयात करता है.

जर्मन डेवलपमेंट एजेंसी (जीआईजेड) के मुताबिक जर्मनी के इस आयात के कारण 2016 से 2018 के दौरान दुनिया भर में 138,000 हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए. इस जरूरत से ज्यादा उपभोग का सबसे अधिक भार दक्षिण के देश जलवायु परिवर्तन और वहां नष्ट होते पर्यावरण के रूप में उठाते हैं.

पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वाले एक अन्य संगठन ‘फ्रेंड्स ऑफ अर्थ' ने जर्मनी में मिट्टी, पानी और खनिज पदार्थों जैसे प्राकृतिक संसाधनों का लापरवाही के साथ इस्तेमाल करने की आलोचना की है. संस्था के चेयरमैन ओलाफ बांट ने एक बयान में कहा, "हमारी पृथ्वी पर अत्यधिक बोझ है. एक देश जो इतने संसाधनों का इस्तेमाल करता है, उसमें हम बेहद घटिया और लापरवाह तरीके से काम कर रहे हैं." संगठन ने सरकार से मिट्टी, जमीन, पानी, लकड़ी, जंगल और मछली पालन की जगहों को सुरक्षित करने के लिए एक कानून की मांग की है.

Aktion „Wahre Preise“ bei Penny Markt
मांस का बढ़ता उपभोग ओवरशूट की एक बड़ी वजहतस्वीर: INA FASSBENDER/AFP

अधिक उपभोग से नहीं आती खुशहाली

हैप्पी प्लैनेट इंडेक्स के मुताबिक अधिक उपभोग से नागरिकों की बेहतर और खुशहाल नहीं बनती. बर्लिन के थिंक टैंक हॉट एंड कूल ने इस इंडेक्स को जारी किया था. यह संस्था खुशहाली, जीवन अवधि, कार्बन फुटप्रिंट जैसे मुद्दों पर आंकड़े इकट्ठा करती है. इससे यह पता लगाया जाता है कि एक देश बिना धरती के संसाधनों का दोहन किए अपने नागरिकों का कितना ख्याल रख पा रहा है. 

उदाहरण के तौर पर स्वीडन और जर्मनी में लोगों की खुशहाली और जीवन अवधि का स्तर बेहद मिलता जुलता है. हालांकि, जर्मनी के मुकाबले स्वीडन जीवन की यह गुणवत्ता 16 फीसदी कम उत्सर्जन के साथ पा लेता है. कोस्टा रिका में भी जीवन अवधि जर्मनी से मिलती जुलती ही है लेकिन वहां पर्यावरण पर पड़ने वाला नुकसान बिल्कुल आधा है.

अनावश्यक उपभोग पर ध्यान देने की जरूरत

वानुआतु, स्वीडन, एल सल्वाडोर, कोस्टा रिका और निकारागुआ उन देशों में हैं, जिन्होंने पर्यावरण पर बेहद कम प्रभाव के साथ अच्छे जीवन को संतुलित करने में कामयाबी पाई है. 

हैप्पी प्लैनेट इंडेक्स के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक कमाई करने वाले 10 फीसदी लोग ही करीब आधे उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि, कम उत्सर्जन करने वालों के मुकाबले इन्हें भी बेहतर जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ा कोई फायदा नहीं मिल रहा है.

इसका एक अच्छा उदाहरण हवाई यात्रा है. जो लोग अधिक हवाई यात्रा करते हैं, उनके उत्सर्जन की मात्रा भी अधिक होती है लेकिन इससे उनके जीवन में खुशहाली का स्तर, कम उत्सर्जन करने वालों की तुलना में बढ़ती नहीं है. अमेरिका में हुए एक अध्ययन के मुताबिक अमीर घरों के कार्बन फुटप्रिंट कम आय वाले घरों के मुकाबले 25 फीसदी अधिक होते हैं, लेकिन जीवन को लेकर संतुष्टि का स्तर दोनों में ही समान पाया गया.

बर्लिन स्थित थिंक टैंक ‘हॉट और कूल' इंस्टिट्यूट के निदेशक लुइस अकेंजी के मुताबिक जरूरत है कि सभी देश अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करें. वह कहते हैं कि हमें गैरबराबरी और अनावश्यक उपभोग पर ध्यान देने की जरूरत है जो धरती के संकट को और अधिक बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

बीफ से बेहतर चिकन और चिकन से बेहतर सब्जी