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जयशंकर ने बाइडेन के जेनोफोबिया वाले आरोप को खारिज किया

४ मई २०२४

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के भारत के जेनोफोबिक यानी विदेशी लोगों के प्रति भेदभाव बरतने के बयान को दो आधारों पर खारिज किया है.

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बयान को खारिज किया हैतस्वीर: Michael A. McCoy/Pool/REUTERS

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस बयान को खारिज किया है, जिसमें उन्होंने भारत को जेनोफोबिक बताया था. बाइडेन ने कहा था कि इसी जेनोफोबिया के चलते भारत का विकास बाधित हो रहा है. एस जयशंकर ने भारतीय अखबार इकोनॉमिक टाइम्स के एक राउंड टेबल कार्यक्रम में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ा नहीं रही है और भारत ऐतिहासिक रूप से एक बहुत ही खुला समाज रहा है.

अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र सीएए को लेकर चिंतित

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था, भारत में मौजूद जेनोफोबिया के चलते लड़खड़ा रही है. उन्होंने चीन, रूस और जापान की अर्थव्यवस्था को लेकर भी यही कहा था. भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के जवाब में भारत के सीएए (सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) कानून का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि भारत इसके जरिए मुश्किल हालात में फंसे लोगों के लिए अपने दरवाजे खोलता है.

भारत, चीन और जापान में माइग्रेशन वाकई कम

सीएए के नियमों के मुताबिक सिर्फ तीन देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई अब इन देशों का वैध पासपोर्ट या भारत से वैध वीजा पेश किए बिना नागरिकता हासिल कर सकते हैं. हालांकि मुसलमानों के प्रति भेदभावपूर्ण होने के चलते इस कानून की काफी आलोचना होती रही है.

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन एक कार्यक्रम में बातचीत करते हुए
भारत, चीन और जापान तीनों ही देश दुनिया में सबसे ज्यादा आप्रवासियों के मामले में 10 प्रमुख देशों की सूची से बाहर हैंतस्वीर: Saul Loeb/Poo/AP/picture alliance

दुनिया में सबसे ज्यादा आप्रवासी अमेरिका में रहते हैं. यहां इनकी संख्या 5 करोड़ से भी ज्यादा है. इसके बाद जर्मनी और सऊदी अरब में सबसे ज्यादा आप्रवासी रहते हैं. रूस में भी 1 करोड़ से ज्यादा आप्रवासी रहते हैं. बड़ी आप्रवासी जनसंख्या के मामले में भारत, चीन और जापान दुनिया के 10 सबसे प्रमुख देशों की सूची से बाहर हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति एक भाषण में माइग्रेशन के, अमेरिका के लिए फायदेमंद होने की वकालत कर रहे थे, जब उन्होंने यह बयान दिया.

जापान के लिए सबसे ज्यादा चिंता

अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को पिछले हफ्ते आए आईएमएफ (इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड) के एक बयान की रोशनी में भी देखा जाना चाहिए. इस बयान में आईएमएफ ने कहा था कि 2024 में तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का विकास धीमा पड़ेगा. जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2.7 फीसदी की दर से बढ़ेगी. यह विकास दर पिछले साल की 2.5 फीसदी की विकास दर से थोड़ी ज्यादा रहेगी.

बहुत से अर्थशास्त्री मानते हैं कि अमेरिका में आप्रवासियों की बड़ी संख्या से देश के लेबर फोर्स को काफी फायदा होता है. जबकि जापान के लिए देश की बढ़ती आबादी और माइग्रेशन के लिए उचित नीतियां वाकई चिंता हैं. हालांकि चीन अभी अपनी आबादी की बढ़ती उम्र के चलते लेबर फोर्स में आ रही कमी को रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर पूरा कर सकता है. हालांकि यह उपाय लंबा नहीं चल सकेगा. वहीं भारत के लिए लेबर फोर्स की कमी कोई चिंता नहीं है. लेबर फोर्स का स्किल्ड होना जरूर चिंता का विषय है, लेकिन उसे बढ़ाने के लिए माइग्रेशन से ज्यादा शिक्षा और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च बढ़ाना जरूरी होगा.

रिपोर्टः अविनाश द्विवेदी (रॉयटर्स)

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